चितमें चेतन अंतरगत आपे, सकलमें रह्या समाई ।
अलखको घर याको कोई न लखे, जो ए बोहोत करे चतुराई ।।६
सबके हृदयमें चैतन्यरूपसे परमात्मा विराजमान हैं तथापि संसारके लोग चाहे कितनी ही चतुराई करें, उन्हें पूर्णब्रह्म परमात्माके मूल घर अखण्ड परमधामकी जानकारी प्राप्त नहीं होती.
In the consciousness there exist the living(chetan that what witnesses) which is within you and is within everyone. The home of this being one cannot know no matter how smart they are!
प्रकरण १८ चौपाई २२ kirantan
एम रे सखियो तमे कां करो, बहेनी द्रढ करो कां न मन ।
आपणने मूके नहीं, जेहनुं नाम श्री क्रस्न ।।२२
तामस स्वभाववाली सखियाँ कहतीं हंै, हे सखियो ! तुम अपने मनको इस प्रकार शिथिल क्यों बना रही हो ? तुम अपने मन को दृढ. नहीं बनाती ? जिनका नाम ही श्रीकृष्ण है वे हमें नहीं छोड. सकते.
O dear Sakhi, Why are you feeling so depressed, why don't you strengthen your mind. We cannot leave the one whose name is Shri Krishna.
सखी जोइए आपण वनमां, एम रे थैयो तमे कांय।
जेनुं नाम श्री क्रस्नजी, ते बेठा छे आपण मांय।।२३
हे सखियो ! चलो हम सब मिलकर उन्हें वनमें ढूँढंे.. तुम सब इस प्रकार निराश क्यों हो रही हो ? जिनका नाम श्रीकृष्ण है वे तो हमारे बीच (हृदय) में ही विराजमान हैं.
O dear sakhi, let us find Him in this forest, why are you so sad. The one whose name is Shri Krishna, is residing within us.
O Dear sakhi, lets first search Him in the forest (outside). Why you feel so empty? The one with the name Shri Krishna lives in our heart (within). Seek the one whose name is Krishna within the self. Remember Nijnaam is the real name of the soul within!
खोजी खोजें बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप।
सत सुपने को पारथें पेखे, पर सुपना न देखे साख्यात ।।५
परमात्माको ढूँढ.नेवाले लोग इस विश्वमें पिण्ड-शरीरमें अथवा ब्रह्माण्ड (बाहर) में परमात्माको ढूँढ.ते हैं, परन्तु स्वयं परमात्मा तो आत्म स्वरूपसे अन्तरमें विराजमान हैं. सत्य आत्माएँ (ब्रह्मात्माएँ) पार परमधाममें रहकर इस स्वप्नरूपी झूठे संसारको देख रही हैं, परन्तु स्वप्नके जीव उन्हें देख नहीं पाते.
The seekers look for the Creator in this world like temples or outside like Heaven/Swarg but He is dwelling inside the self. The soul (true being) can witness this illusionary world but the ego conciousness (the perishable entity) cannot see the true form.
Wake up and recognize the world within where we may find the Supreme Lord Himself (imperishable, infinite, eternal, luminious, beautiful, bountiful, abundant supply, love, living - chaitainya, energy, truth, always awake, witnessing). Do not go after the world, it is just a reflection of world within.
नूर रोसन बल धाम को, सो कोई न जाने हम बिन।
अंदर रोसनी सो जानहीं, जिन सिर धाम वतन।।
परमधामके दिव्य ज्ञानके प्रकाशके सामर्थ्यकी जानकारी हम ब्रह्मात्माओंके अतिरिक्त किसीको नहीं है. जिनको परमधामका दायित्व प्राप्त है, वे ही उसके अन्दरके प्रकाशको जान सकतीं हैं.
No one but the divine celestial souls know the splendour, illumination and power of the supreme abode paramdham. Those who are acquainted with light within, only those can experience the original abode of the supreme and bear the responsibility of Paramdham.
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दिल मोमिन अरस कह्या, सैतान दुनी दिल पर ।
क्यों गिरो दुनी भेली चले, भई तफावत यों कर ।।१५
इसीलिए ब्रह्मात्माओंके हृदयको परमधाम कहा है, नश्वर जगतके जीवोंके हृदयमें तो दुष्ट इब्लीसका साम्राज्य है. इस प्रकार नश्वर जगतके जीव ब्रह्मात्माओंके साथ कैसे चल सकते हैं ? इन दोनों समुदायोंमें यही अन्तर है.
The heart of the celestial soul is the true abode of the Lord (eternal, imperishable, absolute Paramdham) but the Satan (Maya) rules the heart of the worldly (one who is aware of only Physical existence) people. How can these two groups go hand in hand when there is nothing common between them.
बाहेर निकसो तो आप नहीं, और माहें तो नरक के कुंड ।
ब्रह्म तो यामें न पाइए, ए क्यों कहिए ब्रह्म घर पिंड ।।१४
शरीरसे बाहर निकल कर ब्रह्माण्डमें ढूँढ.ें तो वहाँ भी परमात्मा दिखाई नहीं देते और इसके अन्दर तो नरकके कुण्डके समान गन्दगी भरी हुई है. इसलिए ब्रह्म इस शरीरमें नहीं है, तब इसे ब्रह्मका घर कैसे कहा जाए?
Searching for the Lord externally we do not find and when we look inside it is nothing but gross. We do not see the Brahm then why do people say the body is temple of Brahm?
पवन जोत सबदा उठे, नाडी चक्र कमल।
इत कैयों कै विध खोजिया, पर यामें ब्रह्म नहीं नेहेचल ।।१५
पाताञ्जल योगशास्त्र, वेदान्त दर्शन तथा सांख्य योगके मतानुसार प्राणायाम द्वारा ज्योति स्वरूपका आभास होता है तथा ब्रह्म (अनहद) नाद सुनाई देता है. इस प्रकार तीनों नाडियाँ, छः चक्र तथा सहस्रदल कमलकी साधना करके लोगोंने विभिन्न प्रकारसे ब्रह्मको ढूँढ.नेका प्रयत्न किया, परन्तु निश्चय ही अविनाशी परमात्मा इस शरीरमें नहीं हैं.
With lots of yog/pranayam, scriptures, philosophies and various methods we try to search it but we could not find the steady Brahm.
पार ब्रह्म क्यों पाइए, ततखिन कीजे उपाए।
कै ढूंढे माहें बाहेर, बिना सतगुरु न लखाए।।१६
पूर्णब्रह्मकी प्राप्ति कैसे हो सकेगी, इसके लिए इसी क्षण प्रयत्न करना चाहिए. कई लोगोंने इस शरीरमें और शरीरके बाहर ब्रह्माण्डमें उनको ढूँढ.ा, परन्तु सच्चे सद्गुरुके बिना ब्रह्मकी पहचान न हो सकी.
How can one attain the Brahm of the beyond in a moment one must try to find. Some try to find within and some without but withour satguru no one can find.
अब संग कीजे तिन गुरकी, खोजके परुष पूरन।
सेवा कीजे सब अंगसों, मन कर करम वचन।।१
इसलिए अब सत्य मार्ग पर चलनेवाले, सम्पूर्ण गुणी-ज्ञाानी, पूर्ण पुरुष ऐसे सद्गुरुको ढूँढ.कर उनका सङ्ग करो. मन वचन और कर्म द्वारा पूर्णरूपसे उनकी सेवा करो और उनके ऊपर श्रद्धा रखकर उनके दिए हुए ज्ञाानके अनुसार चलो.
So try to find such a guru who can find the absolute being (Purush) and when you find such a Guru, pay homage to him and serve him physically, mentally and speech.
सो संग कैसे छोडिए, जो सांचे हैं सतगुर।
उडाए सबे अंतर, बताए दियो निज घर।।१८
जब ऐसे पूर्णपुरुष सद्गुरु मिल जाएँ, तो उनका सङ्ग कैसे छोड.ा जा सकता है ? क्योंकि उन्होंने ही अज्ञाानको दूर कर निजघर अखण्ड (परमधाम) की पहचान करा दी है.
The true guru will eliminate all your doubts how can you let him be away from you. He will clear all your doubts and will show you the abode within (Nij)
पाइए सुध पूरन से, पैंडा बतावें पार।
सबद जो सारे सूझहीं, सब गम पडे संसार।।१९
ऐसे पूर्णज्ञाानी सद्गुरुके उपदेशके द्वारा ही सब प्रकारके ज्ञाान प्राप्त होते हैं. वे ही पारका मार्ग भी बता देते हैं. पश्चात् शास्त्रोंके वचन स्पष्ट हो जाएँगे तथा संसारकी वास्तविकताका भी ज्ञाान हो जाएगा.
When you find such a guru you will decipher the meanings of the scriptures. You will know the reality of the world. The true guru will give you the proofs from the scriptures about the spiritual experiences.
पांच तत्व पिंडमें हुए, सोई तत्व पांच बाहेर।
पांचों आए प्रले मिने, सब हो गयो निराकार।।२०
जैसे यह शरीर पाँच तत्त्वों द्वारा बना हुआ है, उसी प्रकार बाह्य जगत भी इन्हीं पाँच तत्त्वोंसे बना हुआ है. परन्तु जब ये पाँचों तत्त्व महाप्रलयमें नष्ट हो जाएँगे, तब सब कुछ निराकार हो जाएगा.
ए पांचों देखे विध विध, ए तो नहीं थिर ठाम।
यामें सो कैसे रहे, नेहेचल जाको नाम।।२१
इन पाँच तत्वोंसे बने हुए विभिन्न शरीर दिखाई देते हैं किन्तु ये सब स्थिर नहीं हैं. ऐसे नाशवान तत्त्वोंसे बने हुए झूठे शरीरमें अखण्ड परमात्मा कैसे रह सकते हैं ?
पारब्रह्म जित रहे, तित आवे नाहीं काल।
उतपन सब होसी फना, ए तो पांचों ही पंपाल।।२२
जहाँ परब्रह्म परमात्माका वास हो, वहाँ काल पहुँच नहीं सकता. किन्तु जिसकी उत्पत्ति हुई है, उसका नाश भी अवश्य होगा. इसलिए ये पाँचों तत्त्व नश्वर हैं.
Where the ParBrahm dwells, the time cannot reach. Whatever is created will be destroyed these are the perishable forms of 5 elements.
यामें अंतरबासा ब्रह्मका, सो सतगुरु दिया बताए।
बिन समझे या ब्रह्मको, और न कोई उपाए।।२३
इस नश्वर संसारमें परमात्मा अपनी सत्ताके रूपमें विराजमान हैं. इसका रहस्य सद्गुरुने स्पष्ट किया है. ब्रह्मके इस रहस्यको जाने बिना संसारसे पार होनेका कोई दूसरा मार्ग नहीं है.
Satguru has shown us the Brahm resides within. Without understanding of this Brahm there is no other way!
आंकडी अंतरजामी की, कबहूं ना खोली किन।
आद करके अब लों, खोज थके सब जन।।२४
इस प्रकार सत्ताके रूपमें विराजमान अन्तर्यामी परमात्माके रहस्यको आज तक किसीने स्पष्ट नहीं किया था. सृष्टिके आरम्भसे लेकर आज तक सब लोग इस संसारमें परमात्माको ढूँढ.ते हुए थक गए थे.
ए पूरन के प्रकासथें, खुल गया अंतर सब।
सो क्यों रेहेवे ढांपिया, प्रगट होसी अब।।२५
ऐसे पूर्ण सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराजके ज्ञाानके प्रकाश द्वारा अन्तरके पट सब खुल गए हैं. अब यह प्रकाश कब तक छिपा रहेगा, अभी प्रत्यक्ष हो जाएगा अर्थात् अब सब लोग इसे समझ जाएँगे.
जिनको सब कोई खोजहीं, ए खोली आंकडी तिन।
तो इत हुई जाहेर, जो कारज है कारन।।२६
जिस पूर्णब्रह्म परमात्माको सब लोग खोज रहे हैं उन्होंने ही श्रीदेवचन्द्रजीके हृदयमें विराजमान होकर तारतम्य ज्ञाान द्वारा यह रहस्य खोल दिया है. वे ब्रह्माङ्गनाओंकी जागृतिके लिए ही प्रकट हुए हैं, जिनके लिए इस संसारकी रचना हुई है अथवा जिन ब्रह्मात्माओंको सारा संसार खोज रहा है, उन्होंने ही इस संसारमें आकर पूर्णब्रह्मका रहस्य खोल दिया है. अब वे ही आत्माएँ प्रकट हुई हैं, जिनके लिए (कारण) यह संसारका खेल (कार्य) बनाया गया है.
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घर ही में न्यारे रहिए, कीजे अंतरमें बास।
तब गुन वस आपे होवहीं, गयो तिमर सब नास।।२
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इस शरीररूपी घरमें रहते हुए भी अन्तरात्मामें स्थित हो जाओ अर्थात् स्वयंको शरीरसे भिन्न आत्मा समझो. तब ये सब गुण, अङ्ग, इन्द्रियाँ आदि अपने आप वशमें हो जाएँगी. परिणाम स्वरूप अज्ञाानका अन्धकार भी सम्पूर्ण रूपसे नष्ट हो जाएगा.
Dear sundarsathji..... Be detached (you are not the body but the soul) of this body (house) and live in the soul. Then all your qualities, desires, mind will come under your control and all the ignorance will be destroyed. Be soul conscious. You are the soul.
या विध मेला पीउ का, पीछे न्यारे नहीं रैन दिन।
जलमें न्हाइए कोरे रहिए, जागिए माहें सुपन।।२८
इस प्रकार पूर्णब्रह्म परमात्माके साथ मिलन होने पर रात-दिन कभी भी उनसे वियोग नहीं होगा. इसलिए मोहजलमें रहते हुए भी उससे निर्लेप रहो तथा स्वप्नवत् संसारमें रहते हुए भी जागृत रहो.
This is the way to unite with the Lord and later the day and night does not affect you (The changes in the world or of the body, or the age, day or night). You will be living in this world of dream but will not get affected and inside the astral body you will be awakened.
या सुपनतें सुख उपज्यो, जो जागके कीजे विचार ।
आतम भेली पर आतमा, सुपन भेलो संसार।।२९
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जागृत होकर विचार करने पर ज्ञाात होगा कि इस स्वप्नवत् संसारमें रहकर भी अखण्ड सुखका अनुभव हो सकता है. कारण कि आत्माका सम्बन्ध परमात्माके साथ है और स्वप्नकी देहका सम्बन्ध स्वप्नके संसारके साथ है.
You will also enjoy the bliss of eternal if you become conscious and think with the awakened mind that the relation of soul is with the super soul (Par Atam) and physical body is the dream and the rest of the world.
इन विध लाहा लीजिए, अनमिलतीका रे यों।
सुखडा दिया धुतारिए, याको बुरी कहिए क्यों।।३०
इस प्रकार इस विजातीय नाशवान शरीरसे सम्पूर्ण लाभ प्राप्त कर लेना चाहिए. इस ठगिनी देहने भी प्रियतम धनीके मिलनका अखण्ड सुख प्रदान किया, अतः इसे बुरी क्यों कहें ?
Take full advantage of this perishable physical body. This body although is perishable and real but is instrumental to realize us the eternal bliss so why blame it?
जो सुख याथें उपज्यो, सो कह्यो न किनहूं जाए।
पात्र होए पूरा प्रेम का, तिन का रस ताहीमें समाए ।।३१
इस मायावी शरीरके द्वारा जिस अखण्ड सुखका अनुभव होता है, उसका वर्णन किसीसे भी नहीं हो सकता. परब्रह्मके प्रेमके सुपात्र, मूलघरके सम्बन्धी ही इस अखण्ड सुखका वास्तविक लाभ प्राप्त कर सकते हैं. कारण कि ब्रह्मका प्रेमरस, ब्रह्मसे सम्बन्धित प्रेम पात्रमें ही समा सकता है.
When you realize your soul living in the physical body, one cannot express how blissful it is! One needs to be the deserving candidate of full love then the nectar of love can be contained in that soul.
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ए वतनीसों गुझ कीजिए, जो खैंचे तरफ वतन।
प्रेमैंमें भीगे रहिए, पीउसों आनंद घन।।३२
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अखण्ड धामधनीके रहस्यकी बातें परमधामके साथी ब्रह्मसृष्टियोंके साथ ही करना चाहिए क्योंकि वे ही आत्माएँ हमें अखण्ड घर परमधामकी ओर खींचेंगी. इस प्रकार सदैव धामधनीके प्रेममें मग्न होकर मिलनका अखण्ड आनन्द प्राप्त करना चाहिए.
One must reveal the secrets with the other celestial souls who will take us towards our abode. And live immersed in the love and experience the union with the beloved Lord.
महामत पिया संग विलसहीं, सुख अखंड इन पर।
धन धन परपंच ए हुआ, धन धन सो या मंदर।।३३
इस नश्वर शरीरमें रहते हुए भी ऐसा अखण्ड सुख मिला कि महामति अपने धनीके साथ आनन्द विलास कर रहे है. इसके कारण मायाका यह झूठा खेल धन्य हो गया तथा यह शरीररूपी मन्दिर भी धन्य हो गया.
प्रकरण ३४ चौपाई ४३२
Kirantan
हक अरस नजीक सेहेरगसे, दोऊ हादी खोले द्वार।
बैठाए अरस अजीममें, जो कह्या म्याराजें नूर पार।।५१
वस्तुतः परब्रह्म परमात्मा श्री राजजी एवं अखण्ड परमधाम ब्रह्मात्माओंके लिए प्राणनली (शहरग) से भी अति निकट हैं. ये (दोनों) बातें तभी ज्ञाात हुई जब निजानन्द स्वामी सद्गुरु श्री देवचन्द्रजीने मेरे हृदयमें बैठकर तारतम ज्ञाानके द्वारा पारके द्वार खोल दिए और ब्रह्मात्माओंको हम स्वयं परमधाममें ही बैठी हुई हैं ऐसा अनुभव करवाया. इसी परमधामको साक्षात्कार (म्याराज) के समय रसूल मुहम्मदने अक्षर (नूर) से परे बताया है.
Lord is nearer than the wind pipe and Satguru Devchandraji Maharaj revealed this secret and opened the doors of Paramdham and he has given us the experience of Paramdham that is beyond Akshar Noor what is said in holy Myarajnama by Rasool Mohammad.
इतहीं बैठे देखें रूहें, कोई आया नहीं गया।
तुम जानो घर दूर है, सेहेरग से नजीक कह्या।।४४
सद्गुरुने और भी कहा, वस्तुतः ब्रह्मात्माएँ परमधाममें बैठी हुई ही यह खेल (सुरता द्वारा) देख रही हैं. इस कल्पनामय संसारमें न कोई आई है और नहीं उसे लौटकर जाना है. तुम समझ रही हो कि परमधाम दूर है, वास्तवमें परमधाम प्राणनलीसे भी अति निकट है.
We do not have to go anywhere just sitting where you are you will get the Lord. You feel the abode is far but it is nearer than the wind pipe. Think over this my dear sundarsathji, how Lord is so near and yet we do not find Him! The Kingdom of Heaven is within. The Supreme Abode Paramdham is in the heart of the soul as Lord resides there. There is no external world, those who search outside have failed.
नहीं कायम चौदे तबक में, सो इत देखाए दिया।
सेहेरग से नजीक, अरस बका में लिया।।४५
इन चौदह लोकोंमें कोई भी वस्तु अखण्ड नहीं है किन्तु तारतमज्ञाानके द्वारा सद्गुरुने हमें यहीं पर अखण्ड परमधामके दर्शन करवाए. इतना ही नहीं परमधामको अपने प्राण नलीसे भी निकट दिखाकर सभी आत्माओंको अखण्ड परमधाममें जागृत किया.
Whatever you see in this 14 lokas everything is perishable but still the eternal abode is so near to you. This message will make the entire lokas eternal. Later, all will make use of this knowledge and focus their attention within and not look outside and realize the soul and thus the Lord.
साहेदी खुदाय की, रूह अल्ला दई जब।
खुले अंदर पट अरस के, पाई सूरत खुदाय की तब।।४६
इस प्रकार सद्गुरु श्री देवचन्द्रजीने जब पूर्णब्रह्म परमात्माकी साक्षी दी तब अन्तरसे अज्ञाानके आवरण दूर होकर परमधामके द्वार खुल गए और परब्रह्म परमात्माका साक्षात्कार हुआ.
Shri Devachandraji Maharaj has witnessed the Lord. The internal eye when is opened and you find the eternal abode you will see the form of the Lord.
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